Mirza Ghalib Shayari
दोस्तों आज की इस पोस्ट मे हम आपको Mirza Ghalib Shayari पढ़ाएंगे क्योंकि आप मे से काफी लोंग ने केवल मिर्जा गालिब साहब का नाम ही सुना है।
लेकिन आप ने काभी उसने शायरी को नहीं पढ़ क्योंकि मिर्जा साहब अपनी Ghalib Shayari के लिए बहुत अधिक प्रसिद्ध थे। इस लिए आज क्या आज के काई साल पहले भी राजा – महराज मिर्जा साहब की शायरी सुनने के लिए उनको अपने दरवार बुलाते है।
उससे पहले हम आपको Mirza Ghalib जी के जीवन के बारे मे कुछ शब्द बात दे क्योंकि जैसा आप सोचते की कोई व्यक्ति अगर फेमस है तो उसका जीवन भी बहुत रोमांचक होगा।
लेकिन यह सत्य नहीं है।
मिर्जा ग़ालिब का जीवन परिचय
मिर्जा ग़ालिब की पूरा नाम मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग ख़ां इनका जन्म 27 दिसंबर, 1797 को आगरा मे हुआ था। गालिब जी का जन्म एक सैनिक परिवार मे हुआ था। लेकिन बचपन मे ही इनके माता पिता का देहांत हो गया था। जिस वजह से इनका बचपन बहुत दुखद तरह से बीता।
गालिब जी को बचपन से शायरी व कविता लिखने का काफी शौक था इसी वजह से वह 11 बर्ष की उम्र मे ही उन्होंने के कविता लिख डाली।
जिसके बाद से गालिब शहाब ने काई शायरी, कविता लिखी जो आगे चलकर काफी लोंग को बहुत पसंद आई और इसी से गालिब साहब प्रसिद्ध भी होते चले गए।
गालिब जी की शायरी आशिक, दिलेर, बेफ़ाफ़ा, इन्ही सब पर ज्यादा रहती जिस वजह से काफी लोंग को Galib Ki Shayari पसंद आने लगी।
इस लिए आज हम आपको Mirza Ghalib shayari पढ़ने के लिए प्रस्तुत करेंगे जो आपको काफी पसंद आएगी।
Mirza Ghalib Shayari in Hindi
मेरे बारे में कोई राय मत बनाना ग़ालिब,
मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी.,
तुम मुझे कभी दिल, कभी आँखों से पुकारो ग़ालिब,
ये होठो का तकलुफ्फ़ तो ज़माने के लिए है.,
इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये,
कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता.,
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए,
मुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का.,
कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है,
पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने.,
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.,
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया,
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया.,
काँटों की ज़बाँ सूख गई प्यास से या रब,
इक आबला-पा वादी-ए-पुर-ख़ार में आवे.,
काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ,
सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का.,
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग.,

आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं,
उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या,
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही,
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही.,
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा,
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा.,
उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है ग़ालिब,
हम भी गए वाँ और तिरी तक़दीर को रो आए.,
अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो,
जो मय ओ नग़्मा को अंदोह-रुबा कहते हैं.,
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं.,
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.,
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.,
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.,
उम्र भर का तू ने पैमान-ए-वफ़ा बाँधा तो क्या,
उम्र को भी तो नहीं है पाएदारी हाए हाए.,
आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उन से.
कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं.,

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था.,
कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना,
है यूँ कि मुझे दुर्द-ए-तह-ए-जाम बहुत है.,
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब,
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था.,
एतिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना,
ग़ैर ने की आह लेकिन वो ख़फ़ा मुझ पर हुआ.,
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.,
Galib Ki Shayari
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम,
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे.,
अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह,
इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना.,
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है.
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है.,
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.,
हुस्न ग़मज़े की कशाकश से छूटा मेरे बाद,
बारे आराम से हैं एहले-जफ़ा मेरे बाद.,

चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ चंद हसीनों के खतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला.,
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है.,
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर.,
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.,
चाँदनी रात के खामोश सितारों की कसम,
दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं.,
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए.,
मरना चाहे तो मर नहीं सकते,
तुम भी जीना मुहाल करते हो.,
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ‘ग़ालिब’,
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं.,
कितना खौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते.,
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.,

सिसकियाँ लेता है वजूद मेरा गालिब,
नोंच नोंच कर खा गई तेरी याद मुझे.,
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री,
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे.,
उग रहा है दर-ओ-दीवार से सबज़ा ग़ालिब,
हम बयाबां में हैं और घर में बहार आई है.,
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना,
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना.,
घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता,
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है.,
तुम न आए तो क्या सहर न हुई,
हाँ मगर चैन से बसर न हुई,
मेरा नाला सुना ज़माने ने मगर,
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई.,
Mirza Galib Shayari
तेरी वफ़ा से क्या हो तलाफी की दहर में,
तेरे सिवा भी हम पे बहुत से सितम हुए.,
कहते तो हो यूँ कहते, यूँ कहते जो यार आता,
सब कहने की बात है कुछ भी नहीं कहा जाता,
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक.,
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.,

हमने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन,
खाक हो जायेंगे हम तुझको ख़बर होने तक.,
आईना क्यों न दूँ कि तमाशा कहें जिसे,
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे.,
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल के बहलाने को ग़ालिब ख़याल अच्छा है.,
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक.,
चाँदनी रात के खामोश सितारों की कसम,
दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं.,
आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझसे मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न माँग.,
दिल गंवारा नहीं करता शिकस्ते-उम्मीद,
हर तगाफुल पे नवाजिश का गुमां होता है.,
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना.,
तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं है कि बुला भी न सकूं.,
ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता.,

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूँ खून-ए-जिगर होने तक.,
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के.,
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब,
शर्म तुम को मगर नहीं आती.,
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है.,
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे.,
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ.,
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां,
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन.,
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.,
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता.,
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को,
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं.,

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है.,
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.,
तेरे वादे पर जिये हम तो यह जान झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता.,
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता.,
हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का,
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता.,
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं,
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं.,
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़,
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले.,
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है.,
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज,
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं.,
आह को चाहिये इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक.,

बाजीचा ए अतफाल है दुनिया मिरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे.,
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ चंद हसीनों के खतूत.
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला.,
सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है.
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है.,
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा,
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है.,
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब,
शर्म तुम को मगर नहीं आती.,
Ghalib Shayari on Love
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता.,
मेरे कोई दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता.,
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब,
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है.,
न था तो कुछ ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता.,
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन.,

बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे.,
रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज,
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं.,
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.,
लाग् हो तो उसको हम समझे लगाव,
जब न हो कुछ भी तो धोखा खायें क्या.,
खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम,
कहीं ऐसा न हो जहाँ भी वही काफिर सनम निकले.,
थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े,
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ.,
आया है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिब,
किस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद.,
सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है,
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है,
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा,
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है.,
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब,
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे.,
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब,
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है.,
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल के खुश रखने को “ग़ालिब” यह ख्याल अच्छा है.,
बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे.,
Conclusion
दोस्तों आशा करता हु की आपको Ghalib Shayari in Hindi बहुत पसंद आई होगी क्योंकि इस शायरी मे आपको मिर्जा साहब की प्रसिद्ध शायरी पढ़ने का मौका मिला।